महाभारतम्-12-शांतिपर्व-258
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति आकाशादिभूतगुणादिप्रतिपादकव्यासवाक्यानुवादः।। 1।।
व्यास उवाच। | 12-258-1x |
द्वन्द्वासि मोक्षजिज्ञासुरर्थधर्मानुतिष्ठतः। वक्रा गुणवता शिष्यः श्राव्यः पूर्वमिदं महत्।। | 12-258-1a 12-258-1b |
आकाशं मारुतो ज्योतिरा--पृथ्वी च पञ्चमी। भावाभावौ च कालश्च सर्वभूतेषु पञ्चसु।। | 12-258-2a 12-258-2b |
अन्तरात्मकमाकाशं तन्मयं श्रोत्रमिन्द्रियम्। तस्य शब्दं गुणं विद्यान्मुनिः शास्त्रविधानवित्।। | 12-258-3a 12-258-3b |
चरणं मारुतात्मेति प्राणापानौ च तन्मयौ। स्पर्शनं चेन्द्रियं विद्यात्तथा स्पर्शं च तन्मयम्।। | 12-258-4a 12-258-4b |
तापः पाकः प्रकाशश्च ज्योतिश्चक्षुश्च तन्मयम्। तस्य रूपं गुणं विद्यात्तमोनाशकमात्मवान्।। | 12-258-5a 12-258-5b |
प्रक्लेदो द्रवता स्नेह इत्यपामुपदिश्यते। [असृङ्भज्जा च यच्चान्यत्स्निग्धं विद्यात्तदात्मकम्।।] रसनं चेन्द्रियं जिह्वा रसश्चापां गुणो मतः।। | 12-258-6a 12-258-6b 12-258-6c |
संघातः पार्थिवो धातुरस्थिदन्तनखानि च। श्मश्चु रोम च केशाश्च सिरा स्नायु च चर्म च।। | 12-258-7a 12-258-7b |
इन्द्रियं घ्राणसंज्ञातं नासिकेत्यभिसंज्ञिता। गन्धश्चैवेन्द्रियार्थोऽयं विज्ञेयः पृथिवीमयः।। | 12-258-8a 12-258-8b |
उत्तरेषु गुणाः सर्वे सन्ति पूर्वेषु नोत्तराः। पञ्चानां भूतसङ्घानां संततिं मुनयो विदुः।। | 12-258-9a 12-258-9b |
मनो नवममेषां तु बुद्धिस्तु दशमी स्मृता। एकादशस्त्वन्तरात्मा स सर्वः पर उच्यते।। | 12-258-10a 12-258-10b |
व्यवसायात्मिका बुद्धिर्मनो व्याकरणात्मकम्। कर्मानुमानाद्विज्ञेयः स जीवः क्षेत्रसंज्ञकः।। | 12-258-11a 12-258-11b |
एभिः कालात्मकैर्भावैर्यः सर्वैः सर्वमन्वितम्। पश्यत्यकलुयं बुद्ध्या स मोहं नानुवर्तते।। | 12-258-12a 12-258-12b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि अष्टपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 258।। |
12-258-1 द्वन्द्वान्निर्मोक्षजिज्ञासुरिति ध. पाठः।। 12-258-9 उत्तरेषु भूतेषु पूर्वभूतगुणाः सन्ति।। 12-258-11 मनोव्याहरणात्मकमिति ट. थ. पाठः।।
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