महाभारतम्-12-शांतिपर्व-368
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पुलिनवासिना ब्राह्मणेन स्वस्य फलाद्याहारं प्रार्थयतां नागीयानामवधिनिर्देशपूर्वकं प्रतिनिवर्तनम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-368-1x |
अथ तेन नरश्रेष्ठ ब्राह्मणेन तपस्विना। निराहारेण वसता दुःखितास्ते भुजङ्गमाः।। | 12-368-1a 12-368-1b |
सर्वे संभूय सहिता ह्यस्य नावस्य बान्धवाः। भ्रातरस्तनया भार्या ययुस्तं ब्राह्मणं प्रति।। | 12-368-2a 12-368-2b |
तेऽपश्यन्पुलिने तं वै विविक्ते नियतव्रतम्। समासीनं निराहारं द्विजं जप्यपरायणम्।। | 12-368-3a 12-368-3b |
ते सर्वे समभिक्रम्य विप्रमभ्यर्च्य चासकृत्। ऊचुर्वाक्यमसंदिग्धमातिथेयस्य बान्धवाः।। | 12-368-4a 12-368-4b |
षष्ठो हि दिवसस्तेऽद्य प्राप्तस्येह तपोधन। न चाभिभाषसे किंचिदाहारं धर्मवत्सल।। | 12-368-5a 12-368-5b |
आमानभिगतश्चासि वयं च त्वामुपस्थिताः। कार्यं चातिथ्यमस्माभिरीप्सितं तव ऋद्धिमत्।। | 12-368-6a 12-368-6b |
मूलं फलं वा पर्णं वा पयो वा द्विजसत्तम। आहारहेतोरन्नं वा भोक्तुमर्हसि ब्राह्मण।। | 12-368-7a 12-368-7b |
त्यक्ताहारेण भवता वने निवसता त्वया। बालवृद्धमिदं सर्वं पीड्यते धर्मसंकरात्।। | 12-368-8a 12-368-8b |
न हि नो भ्रूणहा कश्चित्पन्नगेष्विह विद्यते। पूर्वाशी वा कुले ह्यस्मिन्देवतातिथिबन्धुषु।। | 12-368-9a 12-368-9b |
ब्राह्मण उवाच। | 12-368-10x |
उपदेशेन युष्माकमाहारोऽयं कृतो मया। द्विरूनं दशरात्रं वै नागस्यागमनं प्रति।। | 12-368-10a 12-368-10b |
यद्यष्टरात्रेऽतिक्रान्ते नागमिष्यति पन्नगः। तदाहारं करिष्यामि तन्निमित्तमिद व्रतम्।। | 12-368-11a 12-368-11b |
कर्तव्यो न च संतापो गम्यतां च यथागतम्। तन्निमित्तमिदं सर्वं नैतद्भेत्तुगिहार्हथ।। | 12-368-12a 12-368-12b |
ते तेन समनुज्ञाता ब्राह्मणेन भुजङ्गमाः। स्वमेव भवनं जग्मुरकृतार्था नरर्षभ।। | 12-368-13a 12-368-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि अष्टषष्ट्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 368।। |
12-368-3 विपिने नियतव्रतमिति ट. पाठः।। 12-368-4 समभिक्रम्य उपेत्य।। 12-368-6 अस्माभिर्वयं सर्वे कुटुम्बिन इति झ. पाठः।। 12-368-9 कश्चिज्जातापद्यनृतोपि वेति झ. पाठः।। 12-368-12 भवद्भिरनुशिष्ठोस्मि गम्यतां चेति झ. पाठः।।
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