महाभारतम्-12-शांतिपर्व-373
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नागेव ब्राह्मणंप्रति सूर्येण स्वंप्रति तद्विम्बप्रविष्टतेजस उञ्छवृत्तिमुनिस्वरूपत्वकथनकथनम्।। 1।।
सूर्य उवाच। | 12-373-1x |
नैष देवोऽनिलसखो नासुरो न च यन्नगः। उञ्छवृत्तिव्रते सिद्धो मुनिरेष दिवं गतः।। | 12-373-1a 12-373-1b |
एष मूलफलाहारः शीर्णपर्णाशनस्तथा। अब्भक्षो वायुभक्षश्च आसीद्विप्रः समाहितः।। | 12-373-2a 12-373-2b |
भवश्चानेन विप्रेण संहिताभिरभिष्टुतः। स्वर्गद्वारे कृतोद्योगो येनासौ त्रिविदं गतः।। | 12-373-3a 12-373-3b |
असंगतिरनाकाङ्क्षी नित्यमुञ्छशिलाशनः। सर्वभूतहिते युक्त एष विप्रो भुजंगमाः।। | 12-373-4a 12-373-4b |
न हि देवा न गन्धर्वा नासुरा न च पन्नगाः। प्रभवन्तीह भूतानां प्राप्तानामुत्तमां गतिम्।। | 12-373-5a 12-373-5b |
एतदेवंविधं दृष्टमाश्चर्यं तत्र मे द्विज। संसिद्धो मानुषः कामं योसौ सिद्धगतिं गतः। सूर्येण सहितो ब्रह्मन्पृथिवीं परिवर्तते।। | 12-373-6a 12-373-6b 12-373-6c |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि त्रिसप्तत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 373।। |
12-373-1 अनिलसखो वह्निः।।
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