महाभारतम्-12-शांतिपर्व-043
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युधिष्ठिराज्ञया भीमादिभिश्चतुर्भिर्दुर्योधनादिगृहपरिग्रहः।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-43-1x |
ततो विसर्जयामास सर्वास्ताः प्रकृतीर्नृपः। विविशुश्चाभ्यनुज्ञाता यथास्वानि गृहाणि ते।। | 12-43-1a 12-43-1b |
ततो युधिष्ठिरो राजा भीमं भीमपराक्रमम्। सान्त्वयन्नब्रवीच्छ्रीमानर्जुनं यमजौ तथा।। | 12-43-2a 12-43-2b |
शत्रुभिर्विविधैः शस्त्रैः क्षतदेहा महारणे। श्रान्ता भवन्तः सुभृशं तापिताः शोकमन्युभिः।। | 12-43-3a 12-43-3b |
अरण्ये दुःखवसतिर्मत्कृते भरतर्षभाः। भवद्भिरनुभूता हि यथा कापुरुषैस्तथा।। | 12-43-4a 12-43-4b |
यथासुखं यथाजोषं जयोऽयमनुभूयताम्। विश्रान्ताँल्लब्धविश्वासाञ्श्वः समेताऽस्मि वः पुनः।। | 12-43-5a 12-43-5b |
ततो दुर्योधनगृहं प्रासादैरुपशोभितम्। बहुरत्नसमाकीर्णं दासीदाससमाकुलम्।। | 12-43-6a 12-43-6b |
धृतराष्ट्राभ्यनुज्ञातं भ्रात्रा दत्तं वृकोदरः। प्रतिपेदे महाबाहुर्मन्दिरं मघवानिव।। | 12-43-7a 12-43-7b |
यथा दुर्योधनगृहं तथा दुःशासनस्य तु। प्रासादभालासंयुक्तं हेमतोरणभूषितम्।। | 12-43-8a 12-43-8b |
दासीदाससुसंपूर्णं प्रभूतधनधान्यवत्। प्रतिपेदे महाबाहुरर्जुनो राजशासनात्।। | 12-43-9a 12-43-9b |
दुर्मर्षणस्य भवनं दुःशासनगृहाद्वरम्। कुबेरभवनप्रख्यं मणिहेमविभूषितम्।। | 12-43-10a 12-43-10b |
नकुलाय वरार्हाय कर्शिताय महावने। ददौ प्रीतो महाराज धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 12-43-11a 12-43-11b |
दुर्मुखस्य च वेश्माग्र्यं श्रीमत्कनकभूषणम्। पूर्णपझदलाक्षीणां स्त्रीणां शयनसंकुलम्।। | 12-43-12a 12-43-12b |
प्रददौ सहदेवाय संततं प्रियकारिणे। मुमुदे तच्च लब्ध्वाऽसौ कैलासं धनदो यथा।। | 12-43-13a 12-43-13b |
युयुत्सुर्विदुरश्चैव सञ्जयश्च विशांपते। सुधर्मा चैव धौम्यश्च यथा स्वाञ्जग्मुरालयान्।। | 12-43-14a 12-43-14b |
सह सात्यकिना शौरिरर्जुनस्य निवेशनम्। विवेश पुरुषव्याघ्रो व्याघ्रो गिरिगुहामिव।। | 12-43-15a 12-43-15b |
तत्र भक्ष्यान्नपानैस्ते मुदिताः सुसुखोषिताः। सुखप्रबद्धा राजानमुपतस्थुर्युधिष्ठिरम्।। | 12-43-16a 12-43-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः।। 43।। |
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