महाभारतम्-12-शांतिपर्व-375
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रत्युञ्छवृत्त्युपाख्यानोपदेशपरम्पराक्रमकथनपूर्वकमुञ्छवृत्तिब्राह्मणस्य वनप्रवेशकथनम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-375-1x |
स चामन्त्र्योरगश्रेष्ठं ब्राह्मणः कृतनिश्चयः। दीक्षाकाङ्क्षी तदा राजंश्च्यवनं भार्गवं श्रितः।। | 12-375-1a 12-375-1b |
स तेन कृतसत्कारो धर्ममेवाधितस्थिवान्। तथैव च कथामेतां राजन्कथितवांस्तदा।। | 12-375-2a 12-375-2b |
भार्गवेणापि राजेन्द्र जनकस्य निवेशने। कथैषा कथिता पुण्या नारदाय महात्मने।। | 12-375-3a 12-375-3b |
नारदेनापि राजेन्द्र देवेन्द्रस्य निवेशने। कथिता भरतश्रेष्ठ पृष्टेनाक्लिष्टकर्मणा।। | 12-375-4a 12-375-4b |
देवराजेन च पुरा कथितैषा कथा शुभा। समस्तेभ्यः प्रशस्तेभ्यो विप्रेभ्यो वसुधाधिप।। | 12-375-5a 12-375-5b |
यदा च मम रामेण युद्धमासीत्सुदारुणम्। वसुभिश्च तदा राजन्कथेयं कथिता मम।। | 12-375-6a 12-375-6b |
पृच्छमानाय तत्त्वेन मया चैवोत्तमा तव। कथेयं कथिता पुण्या धर्म्या धर्मभृतांवर।। | 12-375-7a 12-375-7b |
तदेव परमो धर्मो यन्मां पृच्छसि भारत। आसीद्धीरो ह्यनाकाङ्क्षी धर्मार्थकरणे नृप।। | 12-375-8a 12-375-8b |
स च किल कृतनिश्चयो द्विजो भुजगपतिप्रतिदशितात्मकृत्यः। यमनियमसहो वनान्तरं परिगणितोञ्छशिलाशनः प्रविष्टः।। | 12-375-9a 12-375-9b 12-375-9c 12-375-9d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शतसाहस्रिकायां संहितायां वैयासिक्यां शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि उञ्छवृत्त्युपाख्याने पञ्चसप्तत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 375।। |
12-375-7 मयाप्यद्य तवानद्येति ट. पाठः।। 12-375-9 यमा अहिंसादयः नियमाः शौचादयः। वनान्तरं वनमध्यं प्रविष्टः। उञ्छः कणश आदानं कणिशाद्यर्जनं शिलम्। परिगणितं परिमितमुञ्छशिलार्जितमन्नमश्नन् फणिपत्युक्तामुञ्छवृत्तेर्गतिं प्रापेति शेषः। शमनियमसमाहितो वनान्तमिति ट. पाठः।। समाप्तं च मोक्षधर्मपर्व।। 3।। शान्तिपर्व च समाप्तम्।। 12।। अस्यानन्तरमनुशासनपर्व भविष्यति तस्मायमाद्यः श्लोकः। 12-375-1x वैशंपायन उवाच। 12-375-1a शरतल्पे महात्मानं शयानमपराजितम्। 12-375-1b युधिष्ठिर उपागम्य प्रणिपत्येदमब्रवीत्।।
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