महाभारतम्-12-शांतिपर्व-359
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वैशंपायनेन जनमेजयंप्रति श्रीव्यासस्य श्रीनारायणादपांतरतम इति प्रादुर्भावादिकथनम्।। 1।।
जनमेजय उवाच। | 12-359-1x |
साख्यं योगः पाञ्चरात्रं वेदारण्यकमेव च। ज्ञानान्येतानि ब्रह्मर्षे लोकेषु प्रचरन्ति ह।। | 12-359-1a 12-359-1b |
किमेतान्येकनिष्ठानिं पृथङ्निष्ठानि वा मुने। प्रब्रूहि वै मया पृष्टः प्रवृत्तिं च यथाक्रमम्।। | 12-359-2a 12-359-2b |
`कथं वैकारिको गच्छेत्पुरुषः पुरुषोत्तमम्। वदस्व त्वं मया पृष्टः प्रवृत्तिं च यथाक्रमम्।।' | 12-359-3a 12-359-3b |
वैशंपायन उवाच। | 12-359-4x |
जज्ञे बहुज्ञं परमत्युदारं यं द्वीपमध्ये सुतमात्मवन्तम्। पराशरात्सत्यवती महर्षि तस्मै नमोऽज्ञानतमोनुदाय।। | 12-359-4a 12-359-4b 12-359-4c 12-359-4d |
पितामहाद्यं प्रवदन्ति षष्ठं महर्षिमार्षेयविभूतियुक्तम्। नारायणस्यांशजमेकपुत्रं द्वैपायनं वेदमहानिधानम्।। | 12-359-5a 12-359-5b 12-359-5c 12-359-5d |
तमादिकालेषु महाविभूति र्नारायणो ब्रह्म महानिधानम्। ससर्ज पुत्रार्थमुदारतेजा व्यासं महात्मानमजं पुराणम्।। | 12-359-6a 12-359-6b 12-359-6c 12-359-6d |
जनमेजाय उवाच। | 12-359-7x |
त्वयैव कथितः पूर्वं संभवो द्विजसत्तम। वसिष्ठस्य सुतः शक्तिः शक्तिपुत्रः पराशरः।। | 12-359-7a 12-359-7b |
पराशरस्य दायादः कृष्णद्वैपायनो मुनिः। भूयो नारायणसुतं त्वमेवैनं प्रभाषसे।। | 12-359-8a 12-359-8b |
किमतः पूर्वकं जन्म व्यासस्यामिततेजसः। कथयस्वोत्तममते जन्म नारायणोद्भवम्।। | 12-359-9a 12-359-9b |
वैशंपायन उवाच। | 12-359-10x |
वेदार्थवेत्तुव्यासस्य धर्मिष्ठस्य तपोनिधेः। गुरोर्मे ज्ञाननिष्ठस्य हिमवत्पाद आसतः।। | 12-359-10a 12-359-10b |
कृत्वा भारतमाख्यानं तपः श्रान्तस्य धीमतः। शुश्रूषां तत्परा राजन्कृतवन्तो वयं तदा।। | 12-359-11a 12-359-11b |
सुमन्तुर्जैमिनिश्चैव पैलश्च सुदृढव्रतः। अहं चतुर्थः शिष्यो वै शुको व्यासात्मजस्तथा।। | 12-359-12a 12-359-12b |
एभिः परिवृतो व्यासः शिष्यैः पञ्चभिरुत्तमैः। शुशुभे हिमवत्पादे भूतैर्भूतपतिर्यथा।। | 12-359-13a 12-359-13b |
वेदानावर्तयन्साङ्गान्भारतार्थांश्च सर्वशः। तमेकमनसं दान्तं युक्ता वयमुपास्महे।। | 12-359-14a 12-359-14b |
कथान्तरेऽथकस्मिंश्चित्पृष्टोऽस्माभिर्द्विजोत्तमः। वेदार्थान्भारतार्थांश्च जन्म नारायणात्तथा।। | 12-359-15a 12-359-15b |
स पूर्वमुक्त्वा वेदार्थान्भारतार्थांश्च तत्त्ववित्। नारायणादिदं जन्म व्याहर्तुमुपचक्रमे।। | 12-359-16a 12-359-16b |
शृणुध्वमाख्यानवरमिदमार्षेयमुत्तमम्। आदिकालोद्भवं विप्रास्तपसाऽधिगतं मया।। | 12-359-17a 12-359-17b |
प्राप्ते प्रजाविसर्गे वै सप्तमे पद्मसंभवे। नारायणो महायोगी शभाशुभविवर्जितः।। | 12-359-18a 12-359-18b |
ससृजे नाभितः पूर्वं ब्रह्माणममितप्रभः। ततः स प्रादुरभवदथैनं वाक्यमब्रवीत्।। | 12-359-19a 12-359-19b |
मम त्वं नाभितो जातः प्रजासर्गकरः प्रभुः। सृज प्रजास्त्वं विविधा ब्रह्मन्सजडपण्डिताः।। | 12-359-20a 12-359-20b |
स एवमुक्तो विमुखश्चिन्ताव्याकुलमानसः। प्रणम्य वरदं देवमुवाच हरिमीश्वरम्।। | 12-359-21a 12-359-21b |
का शक्तिर्मम देवेश प्रजाः स्रष्टुं नमोस्तु ते। अप्रज्ञावानहं देव विधत्स्व यदनन्तरम्।। | 12-359-22a 12-359-22b |
स एवमुक्तो भगवान्भूत्वाऽथान्तर्हितस्ततः। चिन्तयामास देवेशो बुद्धिं बुद्धिमतांवरः। स्वरूपिणी ततो बुद्धिरुपतस्थे हरिं प्रभुम्।। | 12-359-23a 12-359-23b 12-359-23c |
योगेन चैनां निर्योगः स्वयं नियुयुजे तदा। स तामैश्वर्ययोगस्थां बुद्धिं गतिमतीं सतीम्।। | 12-359-24a 12-359-24b |
उवाच वचनं देवो बुद्धिं वै प्रभुरव्ययः। ब्रह्माणं प्रविशस्वेति लोकसृष्ट्यर्थसिद्धये। ततस्तमीश्वरादिष्टा बुद्धिः क्षिप्रं विवेश सा।। | 12-359-25a 12-359-25b 12-359-25c |
अथैनं बुद्धिसंयुक्तं पुनः स ददृशे हरिः। भूयश्चैव वचः प्राह सृजेमा विविधाः प्रजाः।। | 12-359-26a 12-359-26b |
बाढमित्येव कृत्वाऽसौ यथाऽऽज्ञां शिरसा हरेः। एवमुक्त्वा स भगवांस्तत्रैवान्तरधायत।। | 12-359-27a 12-359-27b |
प्राप चैनं मुहूर्तेन स्वं स्थानं देवसंज्ञितम्। तां चैव प्रकृतिं प्राप्य एकीभावगतोऽभवत्।। | 12-359-28a 12-359-28b |
अथास्य बुद्धिरभवत्पुनरन्या तदा किल। सृष्टाः प्रजा इमाः सर्वा ब्रह्मणा परमेष्ठिना।। | 12-359-29a 12-359-29b |
दैत्यदानवगन्धर्वरक्षोगणसमाकुला। जाता हीयं वसुमती भाराक्रान्ता तपस्विनी।। | 12-359-30a 12-359-30b |
बहवो बलिनः पृथ्व्यां दैत्यदानवराक्षसाः। भविष्यन्ति तपोयुक्ता वरानप्राप्स्यन्ति चोत्तमान्।। | 12-359-31a 12-359-31b |
अवश्यमेव तैः सर्वैर्वरदानेन दर्पितैः। बाधितव्याः सुरगणा ऋषयश्च तपोधनाः।। | 12-359-32a 12-359-32b |
तत्र न्याय्यमिदं कर्तुं भारावतरणं मया। अथ नानासमुद्भूतैर्वसुधायां यथाक्रमम्।। | 12-359-33a 12-359-33b |
निग्रहेण च पापानां साधूनां प्रग्रहेण च। इदं तपस्विनी सत्या धारयिष्यति मेदिनी।। | 12-359-34a 12-359-34b |
मया ह्येषा हि ध्रियते पातालस्थेन भोगिना। तस्मात्पृथ्व्याः परित्राणं करिष्ये संभवं गतः।। | 12-359-35a 12-359-35b |
एवं स चिन्तयित्वा तु भगवान्मघधुसूदनः। रुपाण्यनेकान्यसृजत्प्रादुर्भावभवाय सः।। | 12-359-36a 12-359-36b |
वाराहं नारसिहं च वामनं मानुषं तथा। एभिर्मया निहन्तव्याः दुर्विनीताः सुरारयः।। | 12-359-37a 12-359-37b |
अथ भूयो जगत्स्रष्टा भोःशब्देनानुनादयन्। सरस्वतीमुच्चचार तत्र सारस्वतोऽभवत्।। | 12-359-38a 12-359-38b |
अपान्तरतमा नाम सुतो वाक्संभवः प्रभोः। भूतभव्यभविष्यज्ञः सत्यवादी दृढव्रतः।। | 12-359-39a 12-359-39b |
तमुवाच नतं मूर्ध्ना देवानामादिवरव्ययः। वेदाख्याने श्रुतिः कार्या त्वया मतिमतांवर।। | 12-359-40a 12-359-40b |
तस्मात्कुरु यथाज्ञप्तं ममैतद्वचनं मुने। तेन भिन्नास्तदा वेदा मनोः स्वायंभुवेन्तरे।। | 12-359-41a 12-359-41b |
ततस्तुतोष भगवान्हरिस्तेनास्य कर्मणा। तपसा च सुतप्तेन यमेन नियमेन च।। | 12-359-42a 12-359-42b |
मन्वन्तरेषु पुत्र त्वमेवं लोकप्रवर्तकः। भविष्यस्यचलो ब्रह्मन्नप्रधृष्यश्च नित्यशः।। | 12-359-43a 12-359-43b |
पुनस्तिष्ये च संप्राप्ते कुरवो नाम भारताः। भविष्यन्ति महात्मानो राजानः प्रथिता भुवि।। | 12-359-44a 12-359-44b |
तेषां त्वत्तः प्रसूतानां कुलभेदो भविष्यति। परस्परविनाशार्थं त्वामृते द्विजसत्तम।। | 12-359-45a 12-359-45b |
तत्राप्यनेकधा वेदान्भेत्स्यसे तपसाऽन्वितः। कृष्णे युगे च संप्राप्ते कृष्णवर्णो भविष्यसि।। | 12-359-46a 12-359-46b |
धर्माणां विविधानां च कर्ता ज्ञानकरस्तथा। भविष्यसि तपोयुक्तो न च रागाद्विमोक्ष्यसे।। | 12-359-47a 12-359-47b |
वीतरागश्च पुत्रस्ते परमात्मा भविष्यति। महेश्वरप्रसादेन नैतद्वचनमन्यथा।। | 12-359-48a 12-359-48b |
यं मानसं वै प्रवदन्ति विप्राः पितामहस्योत्तमबुद्धियुक्तम्। वसिष्ठमग्र्यं च तपोनिधानं यस्यातिसूर्यं व्यरिरिच्यते भाः।। | 12-359-49a 12-359-49b 12-359-49c 12-359-49d |
तस्यान्वपे चापि ततो महर्षिः पराशरो नाम महाप्रभावः। पिता स ते वेदनिधिर्वरिष्ठो महातपा वै तपसो निवासः।। | 12-359-50a 12-359-50b 12-359-50c 12-359-50d |
कानीनगर्भः पितृकन्यकायां तस्मादृषेस्त्वं भविता च पुत्रः।। | 12-359-51a 12-359-51b |
भूतभव्यभविष्याणां ज्ञानानां वेत्स्यसे गतिम्। ये ह्यतिक्रान्तकाः पूर्वं सहस्रसुगपर्ययाः।। | 12-359-52a 12-359-52b |
तांश्च सर्वान्मयोद्दिष्टान्द्रक्ष्यसे तपसाऽन्वितः। पुनर्द्रक्ष्यसि चानेकसहस्रयुगपर्ययान्।। | 12-359-53a 12-359-53b |
अनादिनिधनं लोके चक्रहस्तं च मां मुने। अनुध्यानान्मम मुने नैतद्वचनमन्यथा। भविष्यति महासत्व ख्यातिश्चाप्यतुला तव।। | 12-359-54a 12-359-54b 12-359-54c |
* शनैश्चरः सूर्यपुत्रो भविष्यति मनुर्महान्। तस्मिन्मन्वन्तरे चैव मन्वादिगणपूर्वकः। त्वमेव भविता वत्स मत्प्रसादान्न संशयः।। | 12-359-55a 12-359-55b 12-359-55c |
[यत्किंचिद्विद्यते लोके सर्वं तन्मद्विचेष्टितम्। अन्यो ह्यन्यं चिन्तयति स्वच्छन्दं विदधाम्यहम्।।] | 12-359-56a 12-359-56b |
एवं सारस्वतमृषिमपांतरतमं तथा। युक्त्वा वचनमीशानः साधयस्वेत्यथाब्रवीत्।। | 12-359-57a 12-359-57b |
सोहं तस्य प्रसादेन देवस्य हरिमेधसः। अपांतरतमो नाम्ना ततो जातोऽऽज्ञया हरेः।। | 12-359-58a 12-359-58b |
पुनश्च जातो विख्यातो वसिष्ठकुलनन्दनः।। | 12-359-59a |
तदेतत्कथितं जन्म मया पूर्वकमात्ममः। नारायणप्रसादेन तदा नारायणांशजम्।। | 12-359-60a 12-359-60b |
मया हि सुमहत्तप्तं तपः परमदारुणम्। पुरा मतिमतां श्रेष्ठाः परमेण समाधिना।। | 12-359-61a 12-359-61b |
एतद्वः कथितं सर्वं यन्मां पृच्छत पुत्रकाः। पूर्वजन्म भविष्यं च भक्तानां स्नेहतो मया।। | 12-359-62a 12-359-62b |
वैशंपायन उवाच। | 12-359-63x |
एष ते कथितः पूर्वः संभवोऽस्मद्गुरोर्नृप। व्यासस्याक्लिष्टमनसो यथा पृष्टः पुनः शृणु।। | 12-359-63a 12-359-63b |
साङ्ख्यं योगः पाञ्चरात्रं वेदाः पाशुपतं तथा। ज्ञानान्येतानि राजर्षे विद्धि नानामतानि वै।। | 12-359-64a 12-359-64b |
साङ्ख्यस्य वक्ता कपिलः परमर्षिः स उच्यते। हिरण्यगर्भो योगस्य वेत्ता नान्यः पुरातनः।। | 12-359-65a 12-359-65b |
अपांतपतमाश्चैव वेदाचार्यः स उच्यते। प्राचीनगर्भं तमृषिं प्रवदन्तीह केचन।। | 12-359-66a 12-359-66b |
उमापतिर्भूतपतिः श्रीकण्ठो ब्रह्मणः सुतः। उक्तवानिदमव्यग्रो ज्ञानं पाशुपतं शिवः।। | 12-359-67a 12-359-67b |
पाञ्चरात्रस्य कृत्स्नस्य वक्ता तु भगवान्स्वयम्। सर्वेषु च नृपश्रेष्ठ ज्ञानेष्वेतेषु दृश्यते।। | 12-359-68a 12-359-68b |
यथागमं यथाज्ञानं निष्ठा नारायणः प्रभुः। न चैनमेवं जानन्ति तमोभूता विशांपते।। | 12-359-69a 12-359-69b |
तमेव शास्त्रकर्तारं प्रवदन्ति मनीषिणः। निष्ठां नारायणमृषिं नान्योस्तीति च वादिनः।। | 12-359-70a 12-359-70b |
निःसंशयेषु सर्वेषु नित्यं वसति वै हरिः। ससंशयान्हेतुबलान्नाध्यावसति माधवः।। | 12-359-71a 12-359-71b |
पाञ्चरात्रविदो ये तु यथाक्रमपरा नृप। एकान्तभावोपगतास्ते हरिं प्रविशन्ति वै।। | 12-359-72a 12-359-72b |
साङ्ख्यं च योगं च सनातने द्वे वेदाश्च सर्वे निखिलेन राजन्। सर्वैः समस्तैर्ऋषिभिर्निरुक्तो नारायणो विश्वमिदं पुराणम्।। | 12-359-73a 12-359-73b 12-359-73c 12-359-73d |
शुभाशुभं कर्म समीरितं य त्प्रवर्तते सर्वलोकेषु किंचित्। तस्मादृपेस्तद्भवतीति विद्या द्दिव्यन्तरिक्षे भुवि चाप्सु चेति।। | 12-359-74a 12-359-74b 12-359-74c 12-359-74d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि नारायणीये एकोनषष्ट्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 359।। |
12-359-1 सांख्यं योगः पञ्चरात्रं वेदाः पाशुपतं तथा इति थ. पाठः। सांख्यं योगः पाशुपतं वेदारण्यकमेवचेति ध. पाठः।। 12-359-5 पितामहस्याद्यो नारायणस्तमारभ्य यं षष्ठं वदन्तीति योज्यम्। नारायणस्याङ्गजमिति ध. पाठः।। 12-359-9 पूर्वजं जन्मेति ट. पाठः।। 12-359-19 नाभिजं पत्रमिति ध. पाठः।। 12-359-34 द्वयं तरस्विनी सत्येति ध. पाठः। इयं सरस्वती सत्येति ट. पाठः।। 12-359-55 शनैश्वरभ्राता। सप्तर्षिगुणपूर्वक इति थ. पाठः।।
शांतिपर्व-358 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-360 |