महाभारतम्-12-शांतिपर्व-065
← शांतिपर्व-064 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-065 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-066 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति वर्णाश्रमधर्मकथनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-65-1x |
श्रुता मे कथिताः पूर्वं चत्वारो मानवाश्रमाः। व्याख्यानमेषामाचक्ष्व पृच्छतो मे पितामह।। | 12-65-1a 12-65-1b |
भीष्म उवाच। | 12-65-2x |
विदिताः सर्व एवेह धर्मास्तव युधिष्ठिर। यथा मम महाबाहो विदिताः साधुसंमताः।। | 12-65-2a 12-65-2b |
यत्तु लिङ्गान्तरगतं पृच्छसे मां युधिष्ठिर। धर्मं धर्मभृतां श्रेष्ठ तन्निबोध नराधिप। | 12-65-3a 12-65-3b |
सर्वाण्येतानि कौन्तेय विद्यन्ते भरतर्षभ। साध्वाचारप्रवृत्तानां चातुराश्रम्यकर्मणाम्।। | 12-65-4a 12-65-4b |
अकामद्वेषसंयुक्तो दण्डनीत्या युधिष्ठिर। समदर्शी च भूतेषु भैक्ष्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-5a 12-65-5b |
वेत्ति दानं विसर्गं च विग्रहानुग्रहौ तथा। यथोक्तवृत्तो धीरश्च क्षमाश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-6a 12-65-6b |
अर्हान्पूजयतो नित्यं संविभागेन पाण्डव। सर्वतस्तस्य कौन्तेय भैक्ष्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-7a 12-65-7b |
ज्ञातिसंबन्धिमित्राणि व्यापन्नानि युधिष्ठिर। समभ्युद्धरमाणस्य दीक्षाश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-8a 12-65-8b |
लोकमुख्येषु सत्कारं लिङ्गिमुख्येषु चासकृत्। कुर्वतस्तस्य कौन्तेय वन्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-9a 12-65-9b |
आह्निकं पितृयज्ञांश्च भूतयज्ञान्समानुषान्। कुर्वतः पार्थ विपुलान्वन्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-10a 12-65-10b |
संविभागेन भूतानामतिथीनां तथाऽर्चनात्। देवयज्ञैश्च राजेन्द्र वन्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-11a 12-65-11b |
मर्दनं परराष्ट्राणां शिष्टार्थं सत्यविक्रम। कुर्वतः पुरुषव्याघ्र वन्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-12a 12-65-12b |
पालनात्सर्वभूतानां स्वराष्ट्रपरिपालनात्। दीक्षा बहुविधा राजन्सत्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-13a 12-65-13b |
वेदाध्ययननित्यत्वं क्षमाऽथाचार्यपूजनम्। तथोपाध्यायशुश्रूषा ब्रह्माश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-14a 12-65-14b |
आह्निकाञ्जपमानस्य देवान्पूजयतः सदा। धर्मेण पुरुषव्याघ्र धर्माश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-15a 12-65-15b |
मृत्युर्वा रक्षणं वेति यस्य राज्ञो विनिश्चयः। प्राणद्यूते व्यवस्थाप्य ब्रह्माश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-16a 12-65-16b |
अजिह्नमशठं मार्गं वर्तमानस्य भारत। सर्वदा सर्वभूतेषु ब्रह्माश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-17a 12-65-17b |
वानप्रस्थेषु विप्रेषु त्रैविद्येषु च भारत। प्रयच्छतोऽर्थान्विपुलान्वन्याश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-18a 12-65-18b |
सर्वभूतेष्वनुक्रोशं कुर्वतस्तव भारत। आनृशंस्ये प्रवृत्तस्य नियतः पुण्यसंचयः।। | 12-65-19a 12-65-19b |
बालवृद्धेषु कौन्तेय सर्वावस्थं युधिष्ठिर। अनुक्रोशक्रिया पार्थ धर्म एष सनातनः।। | 12-65-20a 12-65-20b |
बलात्कृतेषु भूतेषु परित्राणं कुरूद्वह। शरणागतेषु कौरव्य परं कारुण्यमाचर।। | 12-65-21a 12-65-21b |
चराचराणां भूतानां रक्षणं चापि सर्वशः। यथार्हपूजां च तथा कुर्वन्गार्हस्थ्यमावसेत्।। | 12-65-22a 12-65-22b |
ज्येष्ठानुज्येष्ठपत्नीनां भ्रातॄणां पुत्रनप्तृणाम्। निग्रहानुग्रहौ पार्थ गार्हस्थ्यममितं तपः।। | 12-65-23a 12-65-23b |
साधूनामर्चनीयानां पूजासु विदितात्मनाम्। पालनं पुरुषव्याघ्र गृहाश्रमपदं भवेत्।। | 12-65-24a 12-65-24b |
आश्रमस्थानि भूतानि यस्य वेश्मनि भारत। भुञ्जते विपुलं भोज्यं तद्गार्हस्थ्यं युधिष्ठिर।। | 12-65-25a 12-65-25b |
यः स्थितः पुरुषो धर्मे धात्रा सृष्टे यथार्थवत्। आश्रमाणां हि सर्वेषां फलं प्राप्नोत्यनामयम्।। | 12-65-26a 12-65-26b |
यस्मिन्न नश्यन्ति गुणाः कौन्तेय पुरुषे सदा। आश्रमस्थं तमप्याहुर्नरश्रेष्ठं युधिष्ठिर।। | 12-65-27a 12-65-27b |
स्थानमानं कुलेमानं वयोमानं तथैव च। कुर्वन्वसति सर्वेषु ह्याश्रमेषु युधिष्ठिर।। | 12-65-28a 12-65-28b |
देशधर्मांश्च कौन्तेय कुलधर्मास्तथैव च। पालयन्पुरुषव्याघ्र राजा सर्वाश्रमी भवेत्।। | 12-65-29a 12-65-29b |
काले विभूतिं भूतानामुपहारांस्तथैव च। अर्हयन्पुरुषव्याघ्र साधूनामाश्रमे वसेत्।। | 12-65-30a 12-65-30b |
देशधर्मगतश्चापि यो धर्मं प्रत्यवेक्षते। सर्वलोकस्य कौन्तेय राजा भवति सोश्रमी।। | 12-65-31a 12-65-31b |
ये धर्मकुशला लोके धर्मं कुर्वन्ति भारत। पालिता यस्य विषये पादांशस्तस्य भूपतेः।। | 12-65-32a 12-65-32b |
धर्मारामान्धर्मपरान्ये न रक्षन्ति मानवान्। पार्थिवाः पुरुषव्याघ्र तेषां पापं हरन्ति ते।। | 12-65-33a 12-65-33b |
ये च रक्षासहायाः स्युः पार्थिवानां युधिष्ठिर। ते चैवांशहराः सर्वे धर्मे परकृतेऽनघ।। | 12-65-34a 12-65-34b |
सर्वाश्रमपदेऽप्याहुर्गार्हस्थ्यं दीप्तनिर्णयम्। पावनं पुरुषव्याघ्र यद्वयं पर्युपास्महे।। | 12-65-35a 12-65-35b |
आत्मोपमस्तु भूतेषु यो वै भवति मानवः। न्यस्तदण्डो जितक्रोधः प्रेत्येह लभते सुखम्।। | 12-65-36a 12-65-36b |
धर्मोच्छ्रिता सत्यजला शीलयष्टिर्दमध्वजा। त्यागवाताध्वगा शीघ्रा नौस्तया सन्तरिष्यति।। | 12-65-37a 12-65-37b |
यदा सर्वत्र निर्मुक्तः कामो नास्य हृदि स्थितः। यदा सत्यान्वितो वृत्तैस्तदा ब्रह्म सम श्नुते।। | 12-65-38a 12-65-38b |
सुप्रसन्नस्तु भावेन योगेन च नराधिप। धर्मं पुरुषशार्दूल प्राप्स्यसे पालने रतः।। | 12-65-39a 12-65-39b |
वेदाध्ययनशीलानां विप्राणां साधुकर्मणाम्। पालने यत्नमातिष्ठ सर्वलोकस्य चानघ।। | 12-65-40a 12-65-40b |
वने चरन्ति ये धर्ममाश्रमेषु च भारत। रक्षणात्तच्छतगुणं धर्मं प्राप्नोति पार्थिवः।। | 12-65-41a 12-65-41b |
एष ते विविधो धर्मः पाण्डवश्रेष्ठ कीर्तितः। युधिष्ठिर त्वमेनं वै पूर्वं दृष्टं सनातनम्।। | 12-65-42a 12-65-42b |
चातुराश्रम्यमैकाग्र्यं चातुर्वर्ण्यं च पाण्डवं। धर्मं पुरुषशार्दूल प्राप्स्यसे पालने रतः।। | 12-65-43a 12-65-43b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि पञ्चषष्टितमोऽध्यायः।। 65।। |
12-65-4 एतानि चातुराश्रम्यकारिणां लिङ्गानि सतां राज्ञां राजधर्मेष्वेव वर्तन्ते इत्यर्थः।। 12-65-5 भैक्ष्याश्रमः ब्रह्मचर्यम्।। 12-65-6 क्षमाश्रमो गार्हस्थ्यम्।। 12-65-7 भैक्ष्याश्रमः संन्यासः।। 12-65-8 दीक्षाश्रमो वैखानसः।। 12-65-12 शिष्टार्थं शिष्टसंरक्षणार्थम्।। 12-65-13 सत्याश्रमः क्षात्राश्रमः।। 12-65-15 धर्माश्रमः यत्याश्रमः।। 12-65-19 सर्वावस्थं पदं भवेत् इति झ. पाठः।। 12-65-31 सोश्रमी सः आश्रमी सर्वाश्रमफलभागित्यर्थः।। 12-65-37 धर्मे स्थिता सत्ववीर्या धर्मसेतुवटारका। त्यागवाताध्वगाशीघ्रा नौस्तं सन्तारयिष्यति। इति झ. पाठः। तत्र धर्मसेतुः सास्त्रं सैव वटारका बन्धनरज्जुर्यत्रेत्यर्थः।।
शांतिपर्व-064 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-066 |