महाभारतम्-12-शांतिपर्व-041
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युधिष्ठिरेण ज्ञातिप्रभृतीनामौर्ध्वदैहिककरणपूर्वकं तदीयादीनां परिपालनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-41-1x |
ततो युधिष्ठिरो राजा ज्ञातीनां ये हता युधि। श्राद्धानि कारयामास तेषां पृथगुदारधीः।। | 12-41-1a 12-41-1b |
धृतराष्ट्रो ददौ राजा पुत्राणामौर्ध्वदेहिकम्। सर्वकामगुणोपेतमन्नं गाश्च धनानि च। रत्नानि च विचित्राणि महार्हाणि महायशाः।। | 12-41-2a 12-41-2b 12-41-2c |
युधिष्ठिरस्तु द्रोणस्य कर्णस्य च महात्मनः। धृष्टद्युम्नाभिमन्युभ्यां हेडिम्बस्य च रक्षसः।। | 12-41-3a 12-41-3b |
विराटप्रभृतीनां च सुहृदामुपकारिणाम्। द्रुपदद्रौपदेयानां द्रौपद्या सहितो ददौ।। | 12-41-4a 12-41-4b |
ब्राह्मणानां सहस्राणि पृथगेकैकमुद्दिशन्। धनै रत्नैश्च गोभिश्च वस्त्रैश्च समतर्पयत्।। | 12-41-5a 12-41-5b |
ये चान्ये पृथिवीपाला येषां नास्ति सुहृज्जनः। उद्दिश्योद्दिश्य तेषां च चक्रे राजौर्ध्वदेहिकम्।। | 12-41-6a 12-41-6b |
सभाः प्रपाश्च विविधास्तटाकानि च पाण्डवः। सुहृदां कारयामास सर्वेषामौर्ध्वदेहिकम्।। | 12-41-7a 12-41-7b |
स तेषामनृणो भूत्वा गत्वा लोकेष्ववाच्यताम्। कृतकृत्योऽभवद्राजा प्रजा धर्मेण पालयन्।। | 12-41-8a 12-41-8b |
धृतराष्ट्रं यथापूर्वं गान्धारीं विदुरं तथा। सर्वांश्च कौरवान्मान्यान्भृत्यांश्च समपूजयत्।। | 12-41-9a 12-41-9b |
याश्च तत्र स्त्रियः काश्चिद्धतवीरा हतात्मजाः।। सर्वास्ताः कौरवो राजा संपूज्यापालायद्धृणी।। | 12-41-10a 12-41-10b |
दीनान्धकृपणानां च गृहाच्छादनभोजनैः। आनृशंस्यपरो राजा चकारानुग्रहं प्रभुः।। | 12-41-11a 12-41-11b |
स विजित्य महीं कृत्स्नामानृण्यं प्राप्य वैरिषु। निःसपत्नः सुखी राजा विजहार युधिष्ठिरः।। | 12-41-12a 12-41-12b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकचत्वारिंशोऽध्यायः।। 41।। |
12-41-10 संपूज्यापालयत्प्रजा इति ड.थ. पाठः।।
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