महाभारतम्-12-शांतिपर्व-282
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति तृष्णात्यागस्य सुखसाधनताप्रतिपादकजनकमाण्डव्यसंवादानुवादः।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-282-1x |
भ्रातरः पितरः पौत्रा ज्ञातयः सुहृदः सुताः। अर्थहेतोर्हताः क्रूरैरस्माभिः पापबुद्धिभिः।। | 12-282-1a 12-282-1b |
येयमर्थोद्भवा तृष्णा कथमेतां पितामह। निवर्तयेयं पापानि तृष्णया कारिता वयम्।। | 12-282-2a 12-282-2b |
भीष्म उवाच। | 12-282-3x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। गीतं विदेहराजेन माण्डव्यायानुपृच्छते।। | 12-282-3a 12-282-3b |
सुसुखं बत जीवामि यस्य मे नास्ति किंचन। मिथिलायां प्रदीप्तायां न मे दह्यति किंचन।। | 12-282-4a 12-282-4b |
अर्थाः खलु समृद्धा हि गाढं दुःखं विजानताम्। असमृद्धास्त्वपि सदा मोहयन्त्यविचक्षणान्।। | 12-282-5a 12-282-5b |
यच्च कामसुखं लोके यच्च दिव्यं महत्सुखम्। तृष्णाक्षयसुखस्यैते नार्हतः षोडशीं कलाम्।। | 12-282-6a 12-282-6b |
यथैव शृङ्गं गोः काले वर्धमानस्य वर्धते। तथैव तृष्णा वित्तेन वर्धमानेन वर्धते।। | 12-282-7a 12-282-7b |
किंचिदेव ममत्वेन यदा भवति कल्पितम्। तदेव परितापाय नाशे संपद्यते पुनः।। | 12-282-8a 12-282-8b |
न कामाननुरुध्येत दुःखं कामेषु वै रतिः। प्राप्यार्थमुपयुञ्जीत धर्मं कामान्विवर्जयेत्।। | 12-282-9a 12-282-9b |
विद्वान्सर्वेषु भूतेषु व्याघ्रमांसोपमो भवेत्। कृतकृत्यो विशुद्धात्मा सर्वं ज्यजति वै स्वयम्।। | 12-282-10a 12-282-10b |
उभे सत्यानृते त्यक्त्वा शोकानन्दौ प्रियाप्रिये। भयाभये च संत्यज्य भव शान्तो निरामयः।। | 12-282-11a 12-282-11b |
या दुस्त्यजा दुर्मतिभिर्या न जीर्यति जीर्यतः। योसौ प्राणान्तिको रोगस्तां तृष्णां त्यजतः सुखं।। | 12-282-12a 12-282-12b |
चारित्रमात्मनः पश्यंश्चन्द्रशुद्धमनामयम्। धर्मात्मा लभते कीर्ति प्रेत्य चेह यथासुखम्।। | 12-282-13a 12-282-13b |
राज्ञस्तद्वचनं श्रुत्वा प्रीतिमानभवद्द्विजः। पूजयित्वा च तद्वाक्यं माण्डव्यो मोक्षमाश्रितः।। | 12-282-14a 12-282-14b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि द्व्यशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 282।। |
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