महाभारतम्-12-शांतिपर्व-042
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युधिष्ठिरेण नामशतकेन श्रीकृष्णस्तवनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-42-1x |
अभिषिक्तो महाप्राज्ञो राज्यं प्राप्य युधिष्ठिरः। दाशार्हं पुण्डरीकाक्षमुवाच प्राञ्जलिः शुचिः।। | 12-42-1a 12-42-1b |
तव कृष्ण प्रसादेन नयेन न बलेन च। बुद्ध्या च यदुशार्दूल तथा विक्रमणेन च।। | 12-42-2a 12-42-2b |
पुनः प्राप्तमिदं राज्यं पितृपैतामहं मया। नमस्ते पुण्डरीकाक्ष पुनः पुनररिंदम।। | 12-42-3a 12-42-3b |
त्वामेकमाहुः पुरुषं त्वामाहुः सात्वतां पतिम्। नामभिस्त्वां बहुविधैः स्तुवन्ति प्रयता द्विजाः।। | 12-42-4a 12-42-4b |
विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु विश्वात्मन्विश्वसंभव। विष्णो जिष्णो हरे कृष्ण वैकुण्ठ पुरुषोत्तम।। | 12-42-5a 12-42-5b |
अदित्याः सप्तधा त्वं तु पुराणो गर्भतां गतः। पृश्निगर्भस्त्वमेवैकस्त्रियुगं त्वां वदन्त्यपि।। | 12-42-6a 12-42-6b |
शुचिश्रवा हृषीकेशो घृतार्चिर्हंस उच्यते। त्रिचक्षुः शंभुरेकस्त्वं विभुर्दामोदरोऽपि च।। | 12-42-7a 12-42-7b |
वराहोऽग्निर्बृहद्भानुर्वृषभस्तार्क्ष्यलक्षणः। अनीकसाहः पुरुषः शिपिविष्ट उरुक्रमः।। | 12-42-8a 12-42-8b |
वरिष्ठ उग्रसेनानीः सत्यो वाजसनिर्गुहः। अच्युतश्च्यावनोऽरीणां संस्कृतो विकृतिर्वृषः।। | 12-42-9a 12-42-9b |
कृष्णधर्मस्त्वमेवादिर्वृषदर्भो वृषाकपिः। सिन्धुर्विधूर्मिस्त्रिककुप् त्रिधामा त्रिवृदच्युतः।। | 12-42-10a 12-42-10b |
सम्राड् विराट् स्वराट् चैव स्वराड्भूतमयो भवः। विभूर्भूरतिभूः कृष्णः कृष्णवर्त्मा त्वमेव च।। | 12-42-11a 12-42-11b |
स्विष्टकृद्भिषजावर्तः कपिलस्त्वं च वामनः। यज्ञो ध्रुवः पतङ्गश्च जयत्सेनस्त्वमुच्यसे।। | 12-42-12a 12-42-12b |
शिखण्डी नहुषो बभ्रुर्दिविस्पृक् त्वं पुनर्वसुः। सुबभ्रू रुक्मयज्ञश्च सुषेणो दुन्दुभिस्तथा।। | 12-42-13a 12-42-13b |
गभस्तिनेमिः श्रीपझः पुष्करः शुष्मधारणः। ऋभुर्विभुः सर्वसूक्ष्मस्त्व धरित्री च पठ्यसे।। | 12-42-14a 12-42-14b |
अम्भोनिधिस्त्वं ब्रह्मा त्वं पवित्रं धाम धामवित्। हिरण्यगर्भः पुरुषः स्वधा स्वाहा च केशवः।। | 12-42-15a 12-42-15b |
योनिस्त्वमस्य प्रलयश्च कृष्ण त्वमेवेदं सृजसि विश्वमग्रे। विश्वं चेदं त्वद्वशे विश्वयोने नमोस्तु ते शार्ङ्गचक्रासिपाणे।। | 12-42-16a 12-42-16b 12-42-16c 12-42-16d |
वैशंपायन उवाच। | 12-42-17x |
एवं स्तुतो धर्मराजेन कृष्णः सभामध्ये प्रीतिमान्पुष्कराक्षः। तमभ्यनन्दद्भारतं पुष्कलाभि र्वाग्भिर्ज्येष्ठं पाण्डवं यादवाग्र्यः।। | 12-42-17a 12-42-17b 12-42-17c 12-42-17d |
`एतन्नामशतं विष्णोर्धर्मराजेन कीर्तितम्। यः पठेच्छृणुयाद्वापि सर्वपापैः प्रमुच्यते।।' | 12-42-18a 12-42-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि द्विचत्वारिंशोऽध्यायः।। 42।। |
12-42-6 सप्तधा विष्ण्वाख्य आदित्यो वामनश्चेति द्वेधा अदित्यामेव जन्म। ततोऽदिते रूपान्तरेषु पृश्निप्रभृतिषु क्रमात्पृश्निगर्भः परशुरामः दाशरधीरामः यादवौ रामकृष्णौ चेति। सर्वेषु गर्भेषु एकएव त्वम्। त्रिषु कृतादिषु युगेषु भवं त्रियुगम्। आदित्याः सप्तरात्रं त्वा पुराणे धर्मतो गतः। इति थ. पाठः।। 12-42-7 नृचक्षुः शंभुरिति थ. द. पाठः।। 12-42-8 वरुणोऽग्निर्वृहिद्भानुर्वृषण इति थ.द. पाठः।। 12-42-9 वाचिष्ठ उग्रसेनानीरिति ड. थ. द. पाठः। संकृतिः प्रकृतिर्विभुरिति ड. थ. पाठः।। 12-42-10 त्रिककुप् ऊर्ध्ववर्त्मा त्वमेवेति थ. द. पाठः।।
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